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पूर्व अतिरिक्त निदेशक

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    प्रो. डी.पी. वर्मा

    प्रोफेसर वर्मा ने 30 मार्च 2017 को राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के अपर निदेशक (शोध एवं प्रशिक्षण) के रूप में भार ग्रहण किया।

    एम.ए. की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् प्रो. डी.पी. वर्मा ने एल.एल.बी. का अध्ययन किया और पटना विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी प्राप्त की। उन्होंने डलहौजी विश्वविद्यालय केनेडा से विशेष योग्यता के साथ एल.एल.एम. उत्तीर्ण किया। वे स्वयं को प्रोफेसर आर.एस.जे. मैकडोनेल्ड पूर्व डीन उल्हौजी ला स्कूल के पर्यवेक्षण में अध्ययन करने में बहुत सम्मानित अनुभवन करते हैं जो बाद में यूरोपियन न्यायालय में मानवाधिकार पर न्यायाधीश नियुक्त किए गये। अपने लगभग 40 वर्षों के सुदीर्घ केरियर में विधिक शिक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय कानून, ज्युरिसप्रुडेंस एवं मानवाधिकार कानून उनकी अभिरूचि एवं शोध के क्षेत्र रहे हैं।

    उन्होंने 1977 में इलाहबाद विश्वविद्यालय के विधि संकाय में व्याख्याता के रूप में अध्यापक के क्षेत्र में प्रवेश किया और बाद में 1979 में विधि विद्यालय बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में सम्मिलित हुए। वे 1997 में कानून के प्रोफेसर के पद पर पदोन्नत किए गए। उन्हें बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में जो राष्ट्रीय महत्व का केन्द्रीय विश्वविद्यालय है कानून के प्रोफेसर के रूप में 20 वर्षो का अनुभव होने का श्रेय प्राप्त है।

    प्रो. वर्मा ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में सन् 2009 से 2012 तक विधि विभाग के अध्यक्ष के रूप में तथा विधि संकाय के डीन के रूप में प्रशासनिक अनुभव प्राप्त किया और विश्वविद्यालय प्राधिकरणों के साथ विधि प्रकोष्ठ के संयोजक, बौद्धिक सम्पदा अधिकार प्रकोष्ठ, एवं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय गैर शिक्षण कर्मचारी शिकायत प्रकोष्ठ के अध्यक्ष के रूप में विभिन्न क्षमताओं में भी कार्य किया। बाद मं वे अपने उन दिनों का स्मरण करते हैं जब वे विश्वविद्यालय में डॉ. भगवानदास छात्रावास के प्रशासनिक वार्डन के रूप में रहे और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ के उपाध्यक्ष चुने गए। उनके पास इन्डियन सोसाइटी ऑ् इंटरनेशनल ला के सदस्य के रूप मे एव इंडियन ला इन्स्टीट्यूट (भारतीय विधिक संस्थान) के आजीवन सदस्य के रूप में सम्बद्धता प्राप्त ह। वे ’अकादमीक’ जो छात्रों शिक्षकों और स्कालरों एक अन्तः अनुशासी संवाद समूह लोकप्रिय बौद्धिक समूह के संस्िापक निदेशक रहे हैं जो सन् 2000 से 2015 तक विश्वविद्यालय परिसर में प्रीावी रूप से कार्य करता रहा।

    वे विश्वभर के 32 जूरियों में से एक चयनित किए गए और इस प्रकार उन्होंने हेग (नीदरलैंड) में हेग अकादमी आफ इंटरनेशनल ला के 1986 के सत्र में शोधकार्य में भाग लिया जहाँ उन्होंने लीडन विश्वविद्यालय के फ्रिट्ज कलशोवन के पर्यवेक्षण में कार्य किया। प्रो. वर्मा ने सन् 1996 में मानवाधिकार के अन्तर्राष्ट्रीय संस्था स्ट्रेस वर्ग (फांस) में 27 वे अध्ययन सत्र में भाग लिया। उनहोंने एक रिओरिएन्टेशन प्रोग्राम में डॉ. हेंसपीटर गासर (अन्तर्राष्ट्रीय समिति रेडक्रास जिनेवा) के निकट सम्पर्क में सन् 1987 में अन्तर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानून में अभिरूचि का विकास किया। उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग भारत सरकार द्वारा, भारत यू.एस.एस. आर सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के अन्तर्गत मनोनी किया गया और उन्होंने ’’अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक कानून’’ विषय पर इन्स्टीट्यूट ऑ स्टेट में व्याख्यान दिया।

    प्रो. वर्मा ’’इंडिविजुअल मेम्बर ऑ द अमेरिकन सोसाइटी ऑ इंटरनेशनल लाल (यू.एस.ए) और एफ.आई.ए.एन. इंटरनेशनल (जर्मनी) के सदस्य, ’’इडियन सोसाइटी फॉर मिलिटरी ला एंड ला ऑ वार (बेलजियम) के सदस्य और ’’इंटरनेशनल इन्स्टीट्यूट ऑ हयूमनीटेरियन ला (इटली) और एमनेस्टी इंटरनेशनल’’ (यूनाइटेड किंगडम) के एसोसिएट सदस्य के रूप में अपना रिकार्ड दर्ज कराते है। उन्होंने विदेशों मे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और सेमिनार में अध्ययन, शोध एवं प्रतिभागिता के संबंध में खूब भ्रमण किया है। उन्होंने केनेडा, फ्रांस, जापान, नेपाल, नीदरलेंड, स्वीडन्, स्विट्जरलैंड, ताइवान और यू.एस.एस.आर. का भ्रमण किया।

    प्रो. वर्मा को मानवाधिकार एवं एंटीनारकोटिक्स इंटेलिकेस ब्यूरो द्वारा ’’मानवाधिकार, पारसमणि’’ की पदवी से तथा अखिल भारतीय विद्या परिषद् द्वारा ’’विद्वत सम्मान’’ से सम्मानित किया गया।

    उन्होंने 7 शोध पत्र तथा 37 एल.एल.एम. शोध निबंध, पर मार्गदर्शन दिया। उन्होंने भारत और विदेश में विधिक पत्रिकाओं में अनेकों शोध परक लेखां का योगदान किया है साथ ही साथ भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में विभिन्न राष्ट्रीय सेमिनारों में विभिन्न विषयों पर महत्वपूर्ण सम्बोधन किए हैं।

    प्रो. वर्मा ने 2007-2008 की अवधि में रोटरी क्लब वाराणसी, सनराइज आफ रोटरी डिस्ट्रिक्ट 0312 आफ रोटरी इंटरनेशनल के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उन्होंने 28 मई 2020 को कार्यालय को छोड़ दिया है ।