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राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा रणनीति

राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा रणनीति (एन.जे.ई.एस.) राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा के दर्शन, दृष्टि और मिशन को परिभाषित करती है।
क. दर्शन : भारत के संविधान के न्याय की दृष्टि
अपनी प्रस्तावना में भारत का संविधान गणराज्य के प्रथम उद्देश्य रूप में ’न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक’ को स्थापित करता है।.

संविधान के अनुच्छेद 39A में व्यवस्था है कि ’’राज्य सुनिश्चित करेगा कि विधिक प्रणाली का संचालन न्याय को बढ़ावा देता है।’’

इस संबंध में न्याय की परिभाषा स्वयं संविधान से लेनी होगी भारतीय संविधान ’’न्याय की व्यापक संहिता है।’’

भारत की न्यायपालिका ने संविधान में स्थापित न्याय दृष्टि उसके अन्तर्गत बनाए गए कानून और पूर्ववर्ती का अनुभव करने की सहायता में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है।

भारत के लोगों ने संवैधानिक नियम और भारत के कानून के नियम के अभिभावकों के रूप में देश की न्याय पालिका में गहा और अनुपालनीय विश्वास विकसित किया है। इस भूमिका के लिए भारतीय न्यायपालिका का विश्वभर में रोल माडल की भूमिका की भांति पालन किया जाता है।

विधि द्वारा सशक्त न्यायिक अभ्यास और पूर्ववर्ती ने ’विचार’ ओर ’तर्कशक्ति’ को भारत में न्यायिक निर्णय के बनाने में मुख्य प्रणाली के रूप में विकसित किया है। न्याय की संवैधानिक दृष्टि साथ ही लागू किए जाने योग्य कानून के प्रावधान इस प्रकार न्यासधीशों द्वारा वास्तविक स्थिति के विरूद्ध ’विचार’ और ’तर्कशक्ति’ का उपयोग करते हुए विकसित एवं प्रयुक्त किए गए हैं।

इस प्रकार मुख्य चुनौती है भारत के संविधान की न्यायदृष्टि को सुरक्षित रखने और बढ़ाने के लिए विचारणा और ’तर्कशक्ति’ की प्रणाली का उपयोग करना।
ख. दृष्टि :
एन.जे.ई.एस. की दृष्टि है - ’’न्यायिक शिक्षा समय पर न्याय प्रदाय को बढ़ाती है।’’
ग. एन.जे.ए. का मिशन :
एन.जे.ए. का मिशन है - (i)विलम्ब एवं बकाया हा्रस (डी.ए.आर) और (ii)न्यायाधीश की उत्तरवादिता और गुणता वृद्धि के माध्यम से सामायिक न्याय (क्यू.आर.जे.) को बढ़ाना उपर्युक्त पर ध्यान केन्द्रित करते हुए सामयिक न्याय को बढ़ाना
घ. प्रणाली/शिक्षा विज्ञान
एन.जे.ए. सतत शिक्षा को ’समाधान निकालने’ की प्रक्रिया के रूप में और न्यायिक शिक्षा को ’न्याय प्रशासन को सशक्त करने हेतु समाधान निकालने’ की प्रक्रिया के रूप में देखता है।

अतएव वहाँ न ’’शिक्षण’’, ’’उपदेश’’ अथवा ’’प्रशिक्षण’’ है, और न कोई ’’शिक्षक’’ न ’’विद्यार्थी’’, न ’’प्रशिक्षणार्थी’’ न ’’प्रशिक्षक’’ है।

बल्कि, एन.जे.ए. में न्यायिक शिक्षा देशभर के न्यायाधीशों को एक साथ लाती है ताकि वे न्याय के प्रशासन में सामने आ रही मुख्य रूकावटों को संयुक्त रूप से पहिचानने के लिए एक मंत्र प्रदान कर सके और इन रूकावटों पर विजय प्राप्त करने में समर्थ होंगे परिणामतः न्यायाधीश का प्रशासन सशक्त होगा।

समाधान में शामिल ये हो सकते हैं - उदाहरण के लिए पीढ़ि, और विधि का न्याय/अतिरिक्त ज्ञान, आधुनिक तकनीक का प्रयोग, और आधुनिक प्रबन्ध विधियाँ, उपयुक्त पहुँच की नियुक्ति स्टेक होल्डर (यथा वकील, सरकारी अधिकारी, कर्मचारी वर्ग जैसे स्टेक होल्डर के साथ सम्बन्धों के प्रबन्धन का उपयुक्त परिवर्तन, नई तकनीक और टृल्स और परिर्वतन।

इस प्रक्रिया में सहायता करने के लिए एन.जे.ए. प्राथमिकता वाली चुनौतियों को चिन्हित करेगा जिनका सामना न्याय के प्रशासन में करना पड़ रहा है और समस्या के समाधान हेतु उपयुक्त कार्यक्रम आयोजित करेगा। एन.जे.ए. ज्ञान निवेश (जैसे वृत्तचित्र साथ ही विशेषज्ञ) और नये विचार इकट्ठा करेगा। एन.जे.ए. कार्यक्रम ज्ञान और विशेष दक्षता को आदान-प्रदान करने के लिए सुविधा प्रदान करेगा और इस प्रकार ज्ञान का रूपान्तर करेगा और नया ज्ञान उत्पन्न करेगा।

न्यायिक शिक्षा के लिए यह पहुँच समस्या समाधान हेतु परस्पर ज्ञान बांटने के रूप में प्रतिभागी न्यायाधीशों को न्यायिक शिक्षा के केन्द्र पर लाता है और न्यायिक शिक्षा की प्रक्रिया में उनके सक्रिय भागीदारी की माँग करता है। ’’शिक्षण’’, ’’प्रशिक्षण’’ और व्याख्यान के माध्यम से सूचना का एक तरफा संप्रेषण इस पहुँच के लिए उपयुक्त नहीं होगा।

अतएव, एन.जे.ए. कार्यक्रम अन्तः क्रियात्मक पहुँच के उपयोग के लिए खोज करेगा जिसमें प्रतिभागी सक्रियता से अपना ज्ञान, अनुभव और विचार परस्पर बाँटेंगे और अग्रसक्रिय चिन्तन में सलग्न होंगे। केसन अध्ययन, समूह-अभ्यास, स्वांग (नकली चीज), रोलप्ले, क्षेत्र भ्रमण और प्रयोगात्मक शिक्षा ये सभी एन.जे.ए. में प्रयोग में लाई जाने वाली शिक्षण प्रणाली के लिए चाबी है।

विधि का विकास/न्यायिक प्रणालियों का विकास
सामान्य विधि प्रणाली में न्यायाधीश विधि एवं विधिक और न्यायिक प्रणालियों/संस्थाओं के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाते है। पूर्ववर्ती सिद्धांत और संवैधानिक प्रावधान (यथा संविधान का अनुच्छेद 142) उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को विधिक एवं संवैधानिक आधार प्रदान करते हैं ताकि विधि (कानून) आवश्यकतानुसार न्याय के हितों पर प्रतिक्रिया दिखा सके।

एन.जे.ई.एस. के अन्तर्गत एन.जे.ए. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का सम्मेलन आयोजित करता है जिसमें न्यायाधीश विभिन्न क्षेत्रों में कानून की वर्तमान स्थिति का आकलन कर सकते हैं और कानून के भावी विकास पर इकट्ठे विचार प्रतिबिम्बित कर सकते हैं ताकि देश की आवश्यकताओं पर और न्याय के हित में प्रतिक्रिया दिखा सकें।
ड. पाठ्यक्रम विकास
जैसा कि माननीय मुख्य न्यायाधीश, भारत श्री के.जी. बालकृष्णन्, मार्गदर्शन दिया है, फरवरी 2007 में प्रारम्भ हो रहे एन.जे.ए. का पाठ्यक्रम एक संवेदनशील, माँग आधारित तरीके से, जो उच्च न्यायालयों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है विकसित किया जा रहा है।

पाठ्यक्रम विकास प्रक्रिया में पहला कदम है - अपनी न्यायिक आवश्यकताओं को सुनिश्चित करने के लिए सभी न्यायाधीशों के सर्वेक्षण के आधार पर न्यायिक शिक्षा आवश्यकता मूल्याकंन का निर्माण। यह पहली बार फरवरी/मार्च 2007 में किया गया। तब न्यायाधीशों द्वारा व्यक्त की गई आवश्यकताओं की समीक्षा उच्च न्यायालय द्वारा की गई और न्यायिक शिक्षा की आवश्यकताएँ पहिचानी गई। तब उच्च न्यायालयों ने न्यायिक शिक्षा के उन क्षेत्रों को निश्चित किया जो उसके राज्य न्यायिक अकादमी और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी द्वारा दिए जाएँगे। तब न्यायिक शिक्षा के प्रभार वाले के प्रस्तावित कलेंडर पर औन उनके अपने प्रस्तावित पंचागों पर चर्चा करने के लिए एन.जे.ए. में मिले। उद्देश्य था देश के लिए संयोजित राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा पंचांग विकसित करना। यह एन.जे.ए. का वर्ष 2007-2008 का पंचांग इस सलाह मर्शावरा की विस्तृत प्रक्रिया का उत्पाद है।
च. एस.जे.ए. और एन.जे.ए. के बीच दायित्वों का आबंटन
पुनरावृत्ति को टालने के लिए एस.जे.ए. और एन.जे.ए. के संबंधित दायित्वों के बारे में एक विस्तृत अनुकूलता (मेल) निम्नलिखित पंक्तियों के अनुसार विकसित की गई है।

  एस.जे.ए. एन.जे.ए.
अधिष्ठापन शिक्षा (सी.जे.जे.डी./जे.एम.एफ.सी/एम.एम.)  
X
जिला न्यायालय स्तर पर सीधी भरती वालों के लिए दिग्विन्यास शिक्षा  
X
एन.जे.ए. भोपाल में एक सप्ताह का दिग्विन्यास माड्यूल

सतत न्यायिक शिक्षा (सी.जे.ई.) न्यायाधीशों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जैसी आवश्यकता हो।
निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में -

(1) रिक्त पूर्ति - सी.जे.ई. उन विषयों पर जहाँ एस.जे.ए. सी.जे.ई. नहीं प्रदान कर रहे हैं।

(2) राष्ट्रीय महत्व के मामलों (उदारणार्थ- विलम्ब और बकाया हा्रस, गुणवत्ता और न्याय की प्रतिक्रियात्मकता

(3) जो एस.जे.ए. स्तर पर प्रदत्त है उससे भी अधिक उच्चतर स्तर पर विकसित सी.जे.ई.

’’द्वारपाल’’ शिक्षा (शिक्षा जो न्यायाधीशों को नयी नियुक्तियों के लिए आवश्यक ज्ञान एवं कौशल आवश्यक है)  
जैसा ’’रिक्त स्थान पूर्ति’’ के लिए आवश्यक हो, अर्थात् उन आवश्यकताओं की पूर्ति करना जो एस.जे.ए. द्वारा प्रदान नहीं की गई।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए कार्यक्रम
X

(1)हाल ही में पदोन्नत किए गए न्यायाधीशों के लिए दिग्विन्यास औपचारिक वार्तालाप

(2) कानून एवं न्याय प्रणाली के विकास पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के सम्मेलन

राज्य स्तर पर उपलब्ध सूचना प्राप्त करने के लिए न्यायाधीशों को भोपाल भेजा जाना आवश्यक नहीं है। अतएव जब एस.जे.ए. अधिष्ठापन और ताजा करने योग्य कार्यक्रम आवश्यक रूप से अघतन न्यायिक निर्णयों और विद्यायी कानून पर सूचना संप्रेषण आवश्यक रूप से शामिल होगा, तब एन.जे.ए. कार्यक्रम समस्या हल करने और विधि विकास/न्याय प्रणाली पर केन्द्रित होंगे।
छ. आदर्श राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा पाठ्यक्रम
वर्तमान (मौजूदा) अकादमिक वर्ष के ऊपर, एन.जे.ए. ने न्यायिक शिक्षा के लिए एक सामान्य न्यूनतम स्तरों का संग्रह स्थापित करने की दिशा में नेतृत्व लिया है। एन.जे.ए. में शिक्षा के प्रभारी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की बैठक में न्यायिक शिक्षा हेतु एक आदर्श राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पर चर्चा की गई ओर सहमति हुई। आदर्श पाठ्यक्रम न्याय पालिका के सभी स्तरों के लिए अधिष्ठापन, और सतत न्यायिक शिक्षा को ढांकता है और मात्र सुझाव दिए गए मार्गदर्शन का काम करता है।
ज. एन.जे.ए. की ’’उत्पाद रेखा’’
उपर्युक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एन.जे.ए. के पास छः प्रकार के कार्यक्रम वाली निम्नलिखित एक ’’उत्पाद रेखा’’ है :

  एन.जे.ए. कार्यक्रम
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश
(1) कानून के विकास/न्याय प्रणाली के विकास पर उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के सम्मलेन

(2) हाल ही में पदोन्नत किए गए न्यायाधीशों के लिए दिग्विन्यास औपचारिक वार्तालाप

जिला न्याय पालिका
(1) निर्णय देने/मुख्य न्यायिक कौशल/न्यायिक प्रशासन पर राष्ट्रीय न्यायिक कार्यशाला

(2) स्वतंत्र कानून/न्याय पर राष्ट्रीय न्यायिक संगोष्ठी

राज्य न्यायिक अकादमियाँ
(1) शिक्षक कार्यक्रमों के लिए शिक्षा;

(2) नव चयनित ए.डी.जे. के लिए उनके राज्य स्तरीय अधिष्ठापन कार्यक्रमों के लिए दिग्विन्यास कार्यक्रम

इन कार्यक्रमों का एक संक्षिप्त विंहगावलोकन नीचे दिया जाता है -
(1) राष्ट्रीय सामायिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्री न्यायिक कार्यशाला (केन्द्र बिन्दु : न्याय करना)
निम्नलिखित पर प्रत्यक्ष प्रभाव बनाना (i) विलम्ब और बकाया घटाना और (ii) न्याय की गुणवत्ता और उत्तरवादिता बढ़ाना इस हेतु एन.जे.ए. त्रिदिवसीय कार्यशाला (राष्ट्रीय और साथ क्षेत्रीय) तैयार करता है और देता है जो समस्याओं का विश्लेषण करती है और डी.ए.आर. और क्यू.आर.जे से संबंधित व्यावहारिक समाधान विकसित करती है।

इन कार्यशालाओं का उद्देश्य है- न्यायाधीशों को इकट्ठा बुलाना ताकि न्यायिक प्रशासन के सम्मुख आ रही चुनौतियों पर चर्चा कर सकें, सर्वोत्तम अभ्यास को परस्पर वितरित कर सकें और वर्तमान अवरोधों के मध्य इन चुनौतियों का सामना करने के लिए व्यावहारिक समाधान/उपकरण/तकनीक पहिचान सकें, साथ ही साथ न्याय के प्रशासन को सुगठित करने के लिए प्रणाली संबंधी और संरचनात्मक परिवर्तन की आवश्यकता पहिचान सकें।

लक्ष्य है कि देश में 2500 न्यायाधीश इन माड्यूलों में प्रतिवर्ष भाग लें ताकि 10000 न्यायाधीश चार वर्ष की अवधि में (2007-2008 से 2010-2011) तक एस.जे.ए. की सहायता से पूर जा सकें।
न्यायिक कार्यशाला के संभावित लाभ/प्रतिफल

i) न्याय प्रशासन द्वारा सामना की जा रही प्रधान चुनौतियों को सुलझाने हेतु न्यायिक कार्यशाला ज्ञान और अनुभव/सर्वोत्तम अभ्यास को पूरे देश में परस्पर बांटने में सुगमता प्रदान करेगी।

ii) कार्यशाला तकनीकि और विधिक विशेषज्ञों से ’’पार्खिक’’ निवेश पर आधारित इन चुनौतियों का न्यायाधीशों द्वारा विश्लेषण करने में सुगमता देगी जो समस्याओं को नया ज्ञान और संभावना देगी। इससे न्यायाधीशों को नए और उपयुक्त समाधान विकसित करने/कार्यान्वयन करने में सहायता देगी। तब ये नये विचार देशभर में प्रकाशित और प्रसारित होंगे।

iii) कार्यशाला न्यायाधीशों में प्रधान समस्याओं के बारे में उत्सुकता/जागरूकता बढ़ायेगी और एक राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक आवश्यकता के विषय में राष्ट्रीय हित में प्रधान चुनौतियों को संबोधित करने के लिए स्पष्ट संदेश देगी।

इसके अतिरिक्त मुख्य न्यायिक कौशल, साथ ही साथ, न्यायालय प्रबंधन और न्यायिक प्रशासन पर न्यायिक कार्यशाला होगी।

iv) कार्यशाला में प्रतिभागीदारी से प्रतिभागियों का ज्ञान और कौशल बढ़ेगा और उन्हें राष्ट्रीय न्यायिक बन्धुत्व के साथ सघनता पूर्वक अन्तः क्रिया करने योग्य बनाएगी।

v) जहाँ कहीं समस्या सुलझाने में संभव हो वहाँ न्यायाधीशों को व्यक्तिगत योजना विकसित करने में प्रोत्साहन देगी।

इन कार्यक्रमों के स्पष्ट अल्पकालीन प्रभाव की जाँच करना कठिन है। फिर भी माड्यूल में पहिचानी गई समस्याओं के संबंध में कार्यक्रम का मध्यावधि प्रभाव मापने के लिए एक संरचना विकसित की जा सकती है।
(2) ’’न्याय प्रशासन को सशक्त करने’’ पर राष्ट्रीय न्यायिक संगोष्ठियाँ (केन्द्रित क्षेत्र : स्वतंत्र कानून)
एन.जे.ए. ने विधि और न्याय के प्रशासन में प्रमुख क्षेत्रों ने प्रतिवर्ष कुछ 1000 न्यायाधीशों के लिए संगोष्ठियाँ दी हैं।

ये विशेषीकृत कार्यक्रम मुख्यतः उच्च न्यायालय द्वारा पहिचाने गए विषयों पर न्यायिक शिक्षा आवश्यकता आकलन पर होंगे।उन्नत संगोष्ठियों पर समूह द्वारा, प्रस्तावित कार्यक्रम निम्न सारिणी में दिए गये है :-
(3) प्रशिक्षकों के लिए कार्यक्रम (’’प्रशिक्षक को प्रशिक्षण’’)
एन.जे.ए. शिक्षकों के लिए कार्यक्रम (’’प्रशिक्षक को प्रशिक्षण’’) प्रति वर्ष जैसा उच्च न्यायालयों द्वारा अनुरोध किया जाय, देता है। यह संकाय सदस्यों अथवा राज्य न्यायिक अकादमी के संबंध व्यक्तियों को दिए जाते हैं जिनसे अपेक्षा की जाती है कि वही कार्यक्रम राज्य स्तर पर बहुत से श्रोताओं को दें।
(4) हाल ही में नियुक्त ए.डी.जे. हेतु दिग्विन्यास माड्यूल
जैसा कि उच्च न्यायालयों द्वारा इच्छा की गई, एन.जे.ए. 5 दिवसीय दिग्विन्यास कुछ उन नव चयनित ए.डी.जे. के लिए देगा जो अधिष्ठापन प्रशिक्षण राज्य स्तर पर प्राप्त कर रहे हैं यह दिग्विन्यास colloquium परिचय भारतीय न्यायपालिका के इतिहास और परम्पराओं भारतीय न्यायपालिका के प्रमुख योगदान, न्यायशास्त्र के विकास, राष्ट्रीय महत्व के मामलों, न्याय के प्रशासन, न्यायिक नीति, और आचरण मुख्य न्यायिक कौशल, विलम्ब और बकाया हा्रस और न्यास की संवेदनशीलता के लिए केन्द्रित होगा।
(5) विधि के विकास और न्याय प्रणाली के विकास पर उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों का सम्मेलन
एन.जे.ए. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का सम्मेलन कुंजी-विषयों पर न्यायाधीशों को यह अवसर प्रदान करने के लिए आयोजित करता है कि वे चर्चा करे कि कैसे विधि और न्याय प्रदाय प्रणाली राष्ट्र के सामने नीतिपरिवर्तन के प्रत्युत्तर में विकसित हो रही हैं।
(6) हाल ही में पदोन्नत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए दिग्विन्यास औपचारिक वार्तालाप
एन.जे.ए. ने दो औपचारिक वार्तालाप हाल ही में पदोन्नत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए आयोजित किए। ये वार्तालाप इन न्यायाधीशों को देशभर में एक दूसरे से मिलने और देश के कुछ विशिष्ट और वरिष्ठ न्यायाधीशों से बातचीत करने का अवसर प्रदान करते हैं। ऐसे और अधिक वार्तालाप आवश्यकता के आधार पर आयोजित किए जाएँगे।
झ. मुख्य गुच्छे
न्यायिक शिक्षा में शामिल किए गए विषय दस ’’मुख्य गुच्छों’’ में आयोजित किए गए हैं। संकाय और बाहरी विशेषज्ञ (’’आगन्तुक प्राध्यापक’’) प्रत्येक गुच्छे के लिए पदांकित किए गए है जिससे कि वे विषय वस्तु और भाषण के ढंग संबंधी आवश्यक गुणता आश्वासन दे सकेंगे। दस गुच्छे हैं :
  • गुच्छा I: न्याय करना/न्यायिक संस्थाएँ
  • गुच्छा II: : न्यायालय प्रक्रिया और विवाद समाधान
  • गुच्छा III: लोक विधि (संवैधानिक विधि/प्रशासनिक विधि/शासन)
  • गुच्छा IV: अपराध विधि
  • गुच्छा V: दीवानी, वाणिज्यिक, और आर्थिक कानून
  • गुच्छा VI: व्यक्तिगत कानून, (परिवार कानून, लिंग, शिशु और कानून)
  • गुच्छा VII: असुरक्षित समूहों की सुरक्षा, व्यक्तिगत अधिकार और पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधन
  • गुच्छा VIII: अन्तर्राष्ट्रीय कानून
  • गुच्छा IX: कानून, समाज और विकास
  • गुच्छा X: उभरते हुए क्षेत्र
ञ. कौशल डाटा बेस
उच्च न्यायालय के अनुमोदन से एन.जे.ए. न्यायाधीशों का एक राष्ट्रीय कौशल डाटाबेस स्थापित कर रही है जो देशभर के न्यायाधाशों के कौशल और ज्ञान पर सूचना प्रदान करेगी। डाटाबेस केवल एन.जे.ए. की वेबसाइट पर न्यायाधीशों पासवर्ड प्रोटेक्टेड एक्सेस पर उपलब्ध होगा। डाटाबेस में राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा आवश्यकता आकलन के माध्यम से प्राप्त डाटा होंगे। ऐसा डाटाबेस न्यायिक शिक्षा को अधिक दक्ष बनाने में योग्य होगा और न्यायाधीशों के कौशल को अधिक प्रभावी बनाएगा।

न्यायिक शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली

उपर्युक्त सार रूप विभिन्न कदमों के आधार पर, राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा रणनीति के परिणाम-स्वरूप न्यायिक शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली की स्थापना हुई है। यह आशा की जाती है कि यह प्रणाली आनेवाले वर्षों में सशक्त होगी। राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा प्रणाली में शामिल है -
(i) सामान्य उद्देश्य, लक्ष्य और प्रणाली जैसा कि राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा रणनीति में निर्धारित हुआ।
(ii) आवश्यक आकलन और संयोजित पंचांग विकास के लिए व्यवस्था।
(iii) पाठ्यक्रम विकास ज्ञान-उत्पादन, ज्ञान परस्पर वितरण, ज्ञान प्रबंधन, सामग्री वितरण और स्रोत व्यक्ति और पुस्तकालय और वेब स्रोत एस.जे.ए. और एन.जे.ए. के बीच संयोजन और सहयोग के लिए व्यवस्था।
(iv) न्यायिक शिक्षा का प्रदान, और प्रभाव/गुणता मूल्यांकन।
(v) राज्य और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमियों के बीच संयोजन हेतु संस्थागत ढांचा और
(vi) सामान्य संस्थागत और वित्तीय मामलों पर चर्चा करने और संबोधन करने के लिए ढांचा।

न्यायिक शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली किसी भी प्रकार उनके न्यायिक शिक्षा कार्यक्रमों के संबंध में उच्च न्यायालयों और राज्य न्यायिक अकादमियों की स्वायत्तता, स्वतंत्रता, और लचीलेपन का अतिक्रमण नहीं करती है और न करनी चाहिए। यह सहयोग, चर्चा, और परस्पर ज्ञान बाँटने का ढाँचा मात्र है जिससे कि स्रोतों का अधिक से अधिक प्रभावी उपयोग हो और अनावश्यक दोहरापन टाला जा सके।