राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भारतराष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भारत, Logo
परिकल्पना विवरण संस्था अध्यक्ष रा. न्या. अ. को मार्गदर्शन देने वाले उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश रा. न्या. अ. के प्रबंध मंडलों के सदस्य निदेशक अपर निदेशक (अतिरिक्त निदेशक) रजिस्ट्रार (पंजीयक) संकाय प्रशासन रा. न्या. अ. का चार्टर वार्षिक प्रतिवेदन
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शोध प्रकाशन / पत्रिकाएँ
संस्था
विधिक स्थिति एवं शासन
एन॰जे॰ए॰ (रा॰न्या॰आ॰) सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत 1993 में स्थापित एक स्वतंत्र संस्था है।

भारतके माननीय मुख्य न्यायाधीश रा॰न्या॰अ॰ के प्रबंध मण्डल के अध्यक्ष हैं और इसी प्रकार रा॰न्या॰अ॰ की प्रबंध कौंसिल और कार्यकारिणी समिति और रा॰न्या॰अ॰ की अकादमीय कौंसिल के भी अध्यक्ष हैं।
वित्त पोषण
एन॰जे॰ए॰ (रा॰न्या॰आ॰) भारत सरकार द्वारा पूर्णरूपेण वित्त पोषित है।
प्रबंधन एवं कर्मचारी वर्ग
निदेशक एन.जे.ए. (रा.न्या.अ.) राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी है। निदेशक की नियुक्ति अध्यक्ष भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है।

निदेशक एन॰जे॰अ॰ (रा॰न्या॰अ॰) के कर्मचारी वर्ग में निदेशक के अतिरिक्त निदेशक शोध का एक पद, प्राध्यापकों के तीन पद, सहायक प्राध्यापकों के छःपद, शोधकर्ताओं के छः पद और विधि एसोसिएट के छः पद सम्मिलित हैं।

रा.न्या.अ. में प्रशासनिक अधिकारी और कर्मचारी वर्ग में निदेशक के अतिरिक्त रजिस्ट्रार, अपर रजिस्ट्रार, मुख्य लेखाधिकारी, रखरखाव अभियन्ता और अन्य प्रबन्धकीय एवं कार्यकारी पद सम्मिलित हैं।
केम्पस (स्थली)
रा.न्या.अ. का 63 एकड़ वाला कैम्पस भोपाल के प्राकृतिक एवं प्राचीन शहर के पार्श्ववर्ती स्थान में सुन्दर विंहगम पहाड़ी पर स्थित है, कुछ ही दूर सुप्रसिद्ध और सुन्दर 1000 वर्ष पुरानी झील है जिसके आसपास भोपाल (लगभग 33 वर्ग किलोमीटर के घेरे में) बना हुआ है जहाँ से भव्य झील दिखाई देती है।

रा.न्या.अ. का कैम्पस विश्व भर में सबसे अच्छे न्यायिक शिक्षा कैम्पस के रूप में विस्तृत रूप से जाना जाता है। इसमें 144 प्रतिभागियों के लिए आवासीय सुविधाएँ, सुसज्जित पुस्तकालय, सम्मेलन एवं सेमिनार कक्ष, और स्टेट आफ आर्ट आडियोरियम, मनोरंजन सुविधाएँ पूर्ण सज्जित जिमनाशियम, तरण पुष्कर, सोना, टेनिस, बिलियर्ड और अन्य खेलों से युक्त मनोरंजन सुविधाएँ हैं। रा.न्या.अ. स्थली में 280 आसनों वाला अकेला स्टेट आफ आर्ट- सभाभवन (आडिटोरियम) है।
अकादमीय कार्यक्रम
रा.न्या.अ. के अकादमिक कार्यक्रम राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा प्रणाली (एन.जे.ई.एस.) द्वारा मार्गदर्शिक होते हैं। एन.जे.ई.एस. के अन्तर्गत रा.न्या.अ. न्यायिक शिक्षा के लिए एक राष्ट्रीय प्रणाली स्थापित की है।

एन.जे.ई.एस. सितम्बर 2006 में रा.न्या.अ. और शिक्षा प्रभारी उच्च नयायालयों के न्यायाधीशों की मीटिंग में विकसित किया गया था जिसकी अध्यक्षता माननीय न्यायाधीष के.जी. बालकृष्णन, न्यायाधीश भारत के सर्वोच्च न्यायालय (तत्कालीन) और वर्तमान भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं अध्यक्ष रा.न्या.अ. द्वारा की गई थी। भारत के सर्वाच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश एस.बी. सिन्हा ने भी एन.जे.ई.एस. के विकास में दिशानिर्देश दिया। बाद में एन.जे.ई.एस. का संषोधन विकास उसके कार्यान्वयन के दौरान हुआ जिसका प्रारम्भ जनवरी 2007 में हुआ।
एन.जे.ई.एस. की प्रमुख विशेषताएं नीचे संक्षेप हैं

राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा प्रणाली (एन.जे.ई.एस.)

राष्ट्रीय न्याययिक शिक्षा प्रणाली (एन.जे.ई.एस.) राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा के दर्शन दृष्टि और मिशन को परिभाषित करता है।
क. दर्शनः भारत के संविधान की न्याय दृष्टि - प्रस्तावना में, भारत का संविधान गणराज्य के प्रथम लक्ष्य के रूप में ’’सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय’’ को निर्धारित करता है।
संविधान की धार 39क प्रावधान करता है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधि प्रणाली का परिचालन न्याय को बढ़ावा दोगे।

इस संबंध में न्याय की परिभाषा स्वयं संविधान से ग्रहण की जाना है। भारतीय संविधान एक ’’व्यापक न्याय संहिता है। भारत के न्यायविदों ने संविधान में निर्धारित न्याय दृष्टि उसके अन्तर्गत बने कानून और न्यायिक पूर्वभावी को अनुभव करने में सहायता देने की ऐतिहासिक भूमिका निभाई है।

भारत के लोगों ने संवैधानिक नियम के और भारत के कानून के नियमों के अभिभावकों के रूप में देश की न्याय व्यवस्था में गहरा और अनुपालनीय विश्वास विकसित किया है इस भूमिका के लिए भारतीय न्याय व्यवस्था विश्व भर में एक रोल माडल के रूप में समझी जाती है। न्याय प्रणाली और पूर्व और पूर्व भावी (पूर्व दृष्टान्त) न्यायाधीशों द्वारा औचित्य ’’और’’ तार्किकता’’ का उपयोग करते हुए विधि द्वारा प्रशस्त और औचित्य तथा तार्किकता द्वारा विकसित है जो भारत की न्यायिक निर्णयों की मुख्य प्रणाली है। संवैधानिक न्याय दृष्टि साथ ही साथ लागू होने वाले कानून के प्रावधान वस्तु स्थिति के समक्ष इस प्रकार विकसित और प्रयुक्त किए गये है।.

इस प्रकार न्याय की मुख्य चुनौती है- औचित्य और तार्किकता की विधि का उपयोग करना और भारत के संविधान की न्याय दृष्टि को सुरक्षित और अग्रणी बनाना।
ख. दृष्टि
एन.जे.ई.एस. की दृष्टि है- ’’न्यायिक शिक्षा सामयिक न्याय प्रदाय को बढ़ाता है।’’
ग. रा.न्या.अ. का मिशन-
(1) विलम्ब और बकाया हास (डी ए आर) और (2) न्याय की गुणवत्ता (क्यू आर जे) की वृद्धि पर केन्द्रित करते हुए सामयिक न्याय को बढ़ाना।
घ. विधि/शिक्षण विज्ञान
रा.न्या.अ. का दृष्टिकोण है ’’समाधान निर्माण’’ की प्रक्रिया की शिक्षा को जारी रखा और न्यायिक प्रशासन को सशक्त करने हेतु ’’समाधान निर्माण की प्रक्रिया के रूप में न्यायिक शिक्षा को जारी रखना है।’’

अतः वहाँ एन.जे.ए. में कोई शिक्षण’ ’’उपदेश’’ अथवा प्रशिक्षण’ नहीं है, कोई ’’ शिक्षक’’ अथवा ’’विद्यार्थी’’ कोई ’’प्रशिक्षु’’ अथवा ’’प्रशिक्षक’’ है।

अपितु रा.न्या.अ. में न्यायिक शिक्षा देशभर के न्यायाधीशों को निकट लाती है जिससे उन्हें न्यायिक प्रशासन में सामने आ रही मुख्य अवरोधो को संयुक्त रूप से चिन्हित करने में चबूतरा प्रदान किया जा सके और उन अवरोधों को जीतकर उपयुक्त समाधान विकसित कर सकें। तभी न्यायाधीश न्यायिक शिक्षा को परिणामतः सशक्त बनाते हुए इन उपयुक्त समाधानों को कार्यन्वियन करने में समर्थ होंगें।

समाधान (हल) में सम्मिलित हैं- उदाहरण स्वरूप कानून के नवीन/अतिरिक्त ज्ञान का सृजन और उपयोग तकनीकी एवं आधुनिक प्रबंधन विधियों के बढ़ते हुए अनुप्रयोग, उपयुक्त पहुँच का विकास निर्णय करने की विधि और भाव, न्याय प्रणाली में अन्य स्टेक होल्डर्स यथा वकील, सरकारी अधिकारी, कर्मचारी वर्ग और विवादी के साथ संबंधों में प्रबन्धन के उपयुक्त परिवर्तन, विकास और नई तकनीक के उपयोग और औजार तथा बदलाव।

इस प्रक्रिया में सहायता करने के लिए रा.न्या.अ. न्यायिक प्रशासन का सामना कर रही महत्तवपूर्ण चुनौतियों के चिन्हित करेगी और समस्या का समाधान में सुविधा प्रदान करने वाले उपयुक्त कार्यक्रम आयोजित करेगी। रा.न्या.अ. ज्ञान साधन (डाक्यूमेंटरी के साथ-साथ विशेषज्ञों) और नए विचारों को एकत्र करेगी। जो न्यायाधीषों को समस्या हल करने में सहायता देंगी। रा.न्या.अ. के कार्यक्रम न्यायाधीशों को अपना ज्ञान और विशेषज्ञता परस्पर आदान-प्रदान करे और इस प्रकार ज्ञान रूपांतर होगा और नूतन ज्ञान का सृजन होगा।

’’समस्या हल करने के लिए ज्ञान वितरण’’ के रूप में न्यायिक शिक्षा की यह पहुँच प्रतिभागी न्यायाधीशों को न्यायिक शिक्षा के केन्द्र में लाती है और न्यायिक शिक्षा की प्रक्रिया में उनकी सक्रिय भागीदारी की मांग करती है। ’’शिक्षण’’, ’’प्रशिक्षण’’ और व्याख्यान के माध्यम से एक पक्षीय सूचना संप्रेषण इस पहुँच के लिए उपयुक्त नहीं होगा।

अतः रा.न्या.अ. के कार्यक्रम अन्त क्रियात्मक पहुँच के उपयोग के लिए खोज करेगी जिसमें प्रतिभागी अपने ज्ञान, अनुभव और विचारों को सक्रियता से बांटेंगे और सक्रिय समर्पित विचारों में प्रवृत्त होगी। प्रकरण अध्ययन, समूह अभ्यास, सिमुलेन्स, रोल प्ले, क्षेत्रो के दौरे और प्रायोगिक सीख’ ये सब षिक्षण विज्ञान संबंधी विधियों की कुंजी है जो रा.न्या.अ. में उपयोग की जाएँगी।

कानून का विकास/न्यायिक पद्धति का विकास
सामान्य कानून पद्धति में न्यायाधीश विधि, विधिक और न्यायिक पद्धतियों/संस्थाओं के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाते है। पूर्व भाव और एवं संवैधानिक प्रावधान (जैसे कि संविधान की धारा 142) सर्वोच्य न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों को आवश्यकतानुसार विविध का विकास करने, न्याय के हितों का प्रत्युत्तर देने के लिए कानूनी और संवैधानिक आधार प्रदान करते है।

एन जे ई एस के अन्तर्गत रा.न्या.अ. उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों का सम्मेलन आयोजित करती है जिसमें न्यायाधीश विभिन्न क्षेत्रों में कानून की वर्तमान स्थति की जाँच करते है और साथ ही दे की आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु कानून के भावी विकास की आवश्यकता के लिए और न्याय के हितों में प्रति व्याष करते हैं।
ड. पाठ्यक्रम विकास
जैसा कि भारत के माननीय मुख्य न्यायाधी के.जी. बालकृष्णन ने फरवरी 2007 में प्रारम्भ करते हुए मार्गदर्षन दिया, रा.न्या.अ. का पाठ्यक्रम उत्तरवादी एवं मांग प्रेरित रूप में जो उच्च न्यायालयों की आवष्यकताएँ पूरी करता है, विकसित किया जा रहा है।

पाठ्यक्रम विकास की प्रक्रिया में पहला कदम है- अपनी न्यायिक शिक्षा की आवष्यकताओं को सुनिष्चित करने हेतु सभी न्यायाधीषों के सर्वेक्षण के आधार पर न्यायिक शिक्षा आवष्यकता की जाँच तैयार करना ऐसा पहली बार फरवरी/मार्च 2007 में किया गया। न्यायाधीषों द्वारा व्यक्त की गई आवष्यकताओं की पुनरावलोकन उच्चन्यायालय द्वारा किया और न्यायिक शिक्षा की आवष्यकताएँ पहिचानी गई। तब उच्च न्यायालय ने भी निष्चित क्षेत्रों की न्यायिक आवष्यकताओं का सुनिष्चित किया जो राज्य न्यायिक अकादमी द्वारा प्रदान की जाएगी और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी द्वारा क्षेत्रों में दी जाएगी। तत्पष्चात् न्यायिक शिक्षा के प्रभारी उच्च न्यायालय के न्यायाधीष रा.न्या.अ. में 2007 के लिए प्रस्तावित रा.न्या.अ. कलेन्डर पर और अपने भी कलेंडरों पर चर्चा करने के लिए मिले। उद्देष्यथा देष के लिए एकीकृत राष्ट्रीय कलेण्डर का विकास करना यह 2007-2008 का रा.न्या.अ. कलेण्डर की विस्तृत प्रक्रिया का प्रतिफल है।
च. राज्य न्यायिक अकादमी और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के बीच उत्तरदायित्वों का आबंटन
दोहरापन टालने के लिए एक चौड़ा जनमत से ग्रह आम सहमति एस.जे.ए. और एन.जे.ए. संबंधित उत्तर दायित्वों के सम्बंध में निम्नलिखित पंक्तियों के साथ तैया किया गया।

  SJA NJA
प्रभाव, उत्पादन, शिक्षा (सी.जे.जे.डी./जे.एम.एफ.सी/एम.एम)  
X
डी.जे. स्तर पर सीधे भरती न्यायाधीशों के लिए स्थिति निर्धारण शिक्षा  
X
एन.जे.ए. भोपाल में (एक सप्ताह की स्थिति) निर्धारण शिक्षा माड्यूल
स्तत न्यायिक शिक्षा (सी.जे.ई.) न्यायाधीशों की आवश्कयताओं की पूर्ति करने के अनुसार निम्नलिखि तीन क्षेत्रों में :- (1) ’’रिक्त स्थान पूर्ति’’- सी.जे.ई. उन विषयों पर जहाँ एस.जे.ए. सी.जे.ई. प्रदान नहीं कर रहे हैं। (2) सी.जे.ई. राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर (उदाहरणार्थ- विलम्ब एवं बकाया ह्रास तथा न्याय की गुणवत्ता और प्रतिवादिता (3) उन्नत सी.जे.ई.- जो एस.जे.ए. स्तर प्रदत्त उससे अधिक उच्चतर स्तर पर
’’द्वारपाल शिक्षा/गेट कीपर’’ कि शिक्षा आवष्यक ज्ञान एवं नूतन दायित्वों के साथ न्यायाधीशों को सुसज्जित करने की आवष्यक शिक्षा   ’’रिक्त स्था की पूर्ति’’ हेतु आवष्यकता के अनुसार (अर्थात् उन आवश्यकताओं की पूर्ति करना) जो एस.जे.ए. द्वारा प्रदत्त नहीं की गई
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए कार्यक्रम
X
(1) हाल ही में पदोन्नत न्यायाधीशों के लिए स्थिति निर्धारक- Colloquia (2) कानून के विकास और न्यायिक प्रणाली पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का सम्मेल
राज्य स्तर पर प्राप्य सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए न्यायाधीशों को भोपाल भेजना आवष्यक नहीं है। अतः जहाँ एस.जे.ए. प्रभाव उत्पादन (Induction) और नवकर (Refresher) कार्यक्रम आवश्यक रूप से अद्यतन न्यायिक निर्णयों और वैधानिक अधिनियों पर सूचना के संप्रेषण शामिल हैं वहाँ एन.जे.ए. (रा.न्या.अ.) कार्यक्रम समस्या का निदान खोजने और कानून/न्यायिक प्रणाली के विकास पर केन्द्रित होंगे।
छ. प्रादर्श राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा पाठ्यक्रम
वर्तमान अकादमी वर्ष के ऊपर एन.जे.ए. (रा.न्या.अ.) ने न्यायिक शिक्षा हेतु न्यनतम सामान्य स्तर एक सेट स्थापित करने में नेतृत्व किया है। एन.जे.ए. (रा.न्या.अ.) में शिक्षा प्रभारी उच्च न्यायलय के न्यायाधीशों की सभा में न्यायिक शिक्षा हेतु एक प्रादर्ष राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पर चर्चा की गई एवं सहमति हुई। प्रादर्ष पाठ्यक्रम में न्यायालयों के सभी स्तरों पर प्रभाव उत्पादन (Induction) और सतत न्यायिक शिक्षा शामिल है और मात्र सुझाव युक्त मार्गदर्षिका की तरह कार्य करता है।
ज. एन.जे.ए. (रा.न्या.अ.) की ’’उत्पाद पंक्ति’’
उपर्युक्त लक्ष्यों को प्र्राप्त करने के लिए एन.जे.ए. के पास एक उत्पाद पंक्ति है जिसमें छः प्रकार के निम्नलिखित कार्यक्रम है:

  NJA Programmes
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश (1) कानून के विकास/न्यायिक प्रणाली के विकास पर उच्च न्यायालयों के न्यायाधीषो का सम्मेल

(2) हाल ही में पदोन्नत उच्च न्यायालय के न्यायाधीषों के लिस स्थति निर्धारण (Orientation) Colloquium
जिला न्यायालय (1) निर्णय/मुख्य न्यायिक दक्षता/न्यायिक प्रशासन पर राष्ट्रीय न्यायिक कार्यषाला

(2) मूल कानून/न्याय पर राष्ट्रीय न्यायिक सेमिनार
राज्य न्यायिक एकादमी (1) षिक्षक कार्यक्रम के लिए शिक्षा

(2) नव चयनित ए.डी.जे. के लिए उनके राज्य स्तरीय प्रभाव उत्पादन कार्यक्रम के अंग के रूप में स्थिति निर्धारण कार्यक्रम
इन कार्यक्रमों का संक्षिप्त विंहगावलोकन नीचे प्रदत्त है-
(1) सामयिक न्याय में वृद्धि करने हेतु राष्ट्रीय/क्षेत्रीय न्यायिक कार्यषाला (नामिः निर्णय करना)
(1) विलम्ब और बकाया विद्यटन ;त्मकनबजपवदद्ध और (2) गुणवत्ता एवं न्यायिक प्रतिवादिता वृद्धि पर कपेबमतदपइसम पउचंबज डालने के लिए एन.जे.ए. (रा.न्या.अ.) प्रिदिवसीय कार्यषाला (राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय) तैयार करके प्रदान करती है जो सस्याओं का विषलेषण करती है और डी.ए.आर. एवं क्यू.आर. से संबंधित प्रायोगित समाधान विकसित करती है।

इन कार्यषालाओं का उद्देष्य है- न्यायिक प्रशासन के समाने आ रही चुनौतियों पर बहस करने के लिए सर्वात्तम प्रेक्टिस बाँटने (षेयर करने) और प्रयाग करने योग्य समाधान/औजार/तकनीक चिन्हित करने के लिए न्यायाधीषों को एक साथ बुलाना है जिससे वर्तमान अवक्षेधों में निहित चुनौतियों साथ ही साथ न्यायिक प्रशासन को सुगठित करने के लिए सुव्यवस्थित सरचनात्मक परिवर्तन लोने की आवश्यकता का चिन्हित करना।

लक्ष्य है- कि भारत के 2500 न्यायाधीशों को इन माड्यूलों में प्रतिवर्ष भाग लेना ताकि चार वर्षों की अवधि (2007-2008 से 2010-2011) में एस.जे.ए. की सहायता से 10000 न्यायाधीशों को भागीदारी दी जा सके।
न्यायिक कार्यशाला के संभावित लाभ/परिणाम

i) न्यायिक कार्यषाला से ज्ञान और अनुभव बाँटने/न्यायिक प्रशासन के सम्मुख आर रही मुख्य चुनौतियों को हल करने पर देष भर में सबसे अच्छे अभ्यास (प्रेक्टिस) बांटने में सुविधा होगी।

ii) कार्यषाला में न्यायाधीषों द्वारा ’पार्ष्व’ प्रभावों पर आधारित इन चुनौतियों का विष्लेषण करने में सुविधा होगी। और काननी विषेषज्ञ जो समस्या के लिए नया ज्ञान और ;च्मतेचमबजपअमद्ध ला सकेंगे। इससे न्यायाधीषों को नये और उपयुक्त समाधान विकसित/कार्यान्वित करने में सहायता मिलेगी। और तब पूरे देष में उसे प्रकाषित और क्पेमउपदंजम किया जाएगा।

iii) कार्यषाला से प्राथमिकता वाली समस्याओं के बारे में न्यायाधीषों के मध्य जिज्ञास/जागरूकता बढ़ेगी और राष्ट्रीय स्तर से स्थानीय स्तर तक आवष्यकता के विषय में राष्ट्र हित में प्रभावकारी ढंग से प्राथमिक चुनौतियों को संबोधित करने की आवष्यकता का सन्देष जाएगा।

इसके अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दक्षता और साथ ही साथ न्यायालय प्रबंधन तथा न्यायिक प्रशासन पर भी न्यायिक कार्यषालाएँ होंगी।

iv) कार्यषाला भागीदारी से ज्ञान प्रतिभागियों के ज्ञान और दक्षता में वृद्धि होगी और उनमें राष्ट्रीय न्यायिक बन्धुत्व के साथ सघनता पूर्वक अन्तर्व्यवहार करने के योग्य बनाएगी।

v) न्यायाधीषों को, जहाँ भी समस्याओं को हल करना संभव होगा, वहाँ वैयक्तिक योजना विकसित करने के लिए प्रोत्साहन मिले।

इन कार्यक्रमों का संक्षिप्त अल्पाकालिक प्रभाव monitor (निगरानी) करना कठन हो सकता है। माड्यूल में चिन्हित किये गये समस्याओं के संबंध में मध्यावधि में कार्यक्रमों का प्रभाव मापने के लिए एक ढाँचा तैयार किया जा सकता है
(2) न्यायिक प्रशासन के सुगठित करने के ऊपर राष्ट्रीय न्यायिक सेमिनार (नामिक क्षेत्रः मूल कानून)
एन.जे.ए. (रा.न्या.अ.) कुछ हजार न्यायाधीशों के लिए प्रतिवर्ष कानून और न्याय के प्रशासन में प्राथमिक क्षेत्रों पर उन्नत सेमिनार करता है।

ये विशेषतायुक्त कार्यक्रम न्यायिक शिक्षा आवश्यकता आकलन के माध्यम से उच्च न्यायालय द्वारा चिन्हित विषयों पर मुख्यतः होंगे। उन्नत सेमिनार हेतु प्रस्तावित विषय समूह में निम्न तालिका में दर्शित हैं।
(3) (शिक्षकों के) शिक्षण के लिए कार्यक्रम ’’प्रशिक्षको को प्रशिक्षण देना’’
एन.जे.ए. (रा.न्या.अ.) शिक्षकों के लिए भी (’’प्रशिक्षक के प्रशिक्षा के कार्यक्रम प्रतिवर्ष उच्च न्यायालयों के निवेदन पर देती है। ये संकाय सदस्यों को अथवा राज्य न्यायिक अकादमी के संसाधन सदस्यों को दिए जाते हैं जिनसे अपेक्षा की जाती है कि वे वही कार्यक्रम राज्य न्यायिक अकादमी में बहुत से श्रोताओं को दें।
(4) हाल ही में नियुक्त अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों के लिए
स्थिति निर्धारक माड्यूल उच्च न्यायालय की इच्छानुसार एन.जे.ए. (रा.न्या.अ.) पाँच दिवसीय स्थिति निर्धारक माड्यूल नवनिर्वाचित अति जिला न्यायाधीशों के लिए देगी जो राज्य स्तर पर प्रभाव उत्पादन प्रशिक्षण ले रहे हैं। यह स्थिति निर्धारण colloquium भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास और परम्पराओं पर केन्द्रित होगा। व्यवहार शास्त्र के विकास पर भारतीय न्याय व्यवस्था द्वारा मुख्य योगदान, न्यायिक प्रषासन के राष्ट्रीय मामलों के महत्व, न्यायिक ethic और आचरण, मुख्य न्यायिक दक्षता, विलम्ब और बकाया विद्यटन और न्याय की गुणवत्ता और उत्तर प्रतिवाद पर होगी।
(5) कानून के विकास और न्याय प्रणाली के विकास पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का सममेलन
एन.जे.ए. (रा.न्या.अ.) उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का सम्मलेन मुख्य विषयों पर आयोजित करती है जिससे राष्ट्र में हो रहे नीति परिवर्तनों के प्रतिवाद में बहस करने का अवसर मिल सकें। कैसे कानून और न्याय प्रदान करने की प्रणाली विकासित हो रही है।
(6) Colloquia उन्नत किए गए उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए स्थिति निर्धारण
एन.जे.ए. (रा.न्या.अ.) ने हाल ही में पदोन्नत किए गए उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए दो colloquia आयोजित किए हैं। ये colloquia इन न्यायाधीशों को भारत के एक दूसरे से मिलने का अवसर प्रदान करते हैं और भारत के कुछ बहुत विषिष्ट एवं वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ भी अन्तः क्रिया करने का अवसर प्रदान करते हैं। ऐसे और भी ब्वससवुनपं आवश्यकता के आधार पर आयोजित किए जाएँगे।
I. मुख्य गुच्छे
जो विषय न्यायिक शिक्षा में समाहित है उन्हे दस ’’मुख्य गुच्छो’’ में आयोजित किये गये हैं। संकाय विशेषज्ञ और बाहरी (आगन्तुक प्राध्यापक) विषेषज्ञ प्रत्येक गुच्छे के लिए नियुक्त हैं जिससे वे पाठ्यक्रम सामग्री और डिलीवरी संबंधी आवश्यक गुणवत्ता आष्वासन दे सकें। दस गुच्छे (समूह) है-
  • गुच्छा I: जाँचन/न्यायिक संस्थाएँ
  • गुच्छा II: न्यायालय प्रक्रिया और विवाद समाधान
  • गुच्छा III: जनता कानून (संवैधानिक कानून/प्रषासनिक कानून/प्रबन्धन)
  • गुच्छा IV: आपराधि कानून
  • गुच्छा V: दीवानी, वाणिज्यिक और आर्थिक कानून
  • गुच्छा VI: वैयक्तिक कानून (परिवार कानून, लिंग, बाल एव कानून)
  • गुच्छा VII: चोट पहुँचाने योग्य समूहों की रक्षा, वैयक्ति अधिकार एवं पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधन के
  • गुच्छा VIII: अर्न्राष्ट्रीय कानून
  • गुच्छा IX: कानून, समाज और विकास
  • गुच्छा X: उभरने वाले क्षेत्र
J. कौशल डाटाबेस
उच्च न्यायालय के अनुमोदन से एन.जे.ए. (रा.न्या.अ.) न्यायाधीशों के कौषल डाटाबेस स्थापित करने जा रही है। जो देषभर के न्यायाधीशों के कौषल और ज्ञान पर सूचनाएँ प्रदान करेगा। यह डाटाबेस एन.जे.ए. की बेबसाइट पर केवल न्यायाधीशों को सुरक्षित पासवर्ड के माध्यम से ही उपलब्ध होगा। डाटाबेस में राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा आवष्यकता आकलन के माध्यम से उपलब्ध डाटा (आंकड़े) होंगे। ऐसा डाटा बेस न्यायिक शिक्षा के उपयोग को और अधिक दक्ष और न्यायाधीशों के कौषल के उपयोग को और अधिक प्रभावी बनाएगा।

राष्ट्रीय शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली
ऊपर सारांश में दिए गए विभिन्न कदमों का अनुसरण करते हुए, राष्ट्रीय न्यायिक प्रणाली (Strategy) न्यायिक शिक्षा की एक राष्ट्रीय प्रणाली के रूप में स्थापना में आई है। आशा की जाती है कि यह प्रणाली आने वाले वर्षों में सुगठित होगी। राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा प्रणाली में सम्मिलित हैं- (i) सामान्य उद्देश्य, ध्येय और विधिकरण (Methodologies) जैसा कि राष्ट्रीय न्यायिक शिक्षा प्रणाली में निर्धारित किया गया है। (ii) आवश्यकता आकलन और संयोजन (Co-ordination) कलेंडर विकास हेतु प्रणाली (iii) राज्य न्यायिक अकादमी और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के बीच पाठ््यक्रम विकास में संयोजन एवं सहकारिता के लिए प्रणाली। ज्ञान सृजन/ज्ञान वितरण एवं ज्ञान प्रबन्धन, सामग्रियों और संसाधन व्यक्तियों और पुस्तकालय तथा वेब संसाधन। (iv) न्यायिक शिक्षा में प्रदान का संयोजन और प्रभाव/गुणवत्ता मूल्याकंकन (v) राज्य और राष्ट्रीय न्यायिक अकदमियों के मध्यम संयोजन हेतु संस्थागत फ्रेमवर्क (ढाँचा) संयोजन और (vi) सामान्य संवैधानिक और कार्य संबंधी मामलों पर बहस करने और संबोधन करने हेतु फ्रेमवर्क (ढाँचा)

राष्ट्रीय न्यायिक प्रणाली किसी भी रूप में अपने न्यायिक कार्यक्रमों के सन्दर्भ में उच्च न्यायालय और राज्य न्यायिक अकादमियों की स्वायत्तता, स्वतंत्रता और लचीलेपन पर Impinge नहीं करती चाहिए और नहीं करती है। यह एक फ्रेमवर्क सहकारिता, परिसंवाद ओर ज्ञान वितरण के लिए एक फ्रेम वर्क (ढाँचा) मात्र है जिससे कि संसाधनों का अधिकतम प्रभावी उपयोग हो और अनावश्यक दोहरापन टले।